Here is an essay on the ‘Demand for Commodities’ for class 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on the ‘Demand for Commodities’ especially written for school and college students in Hindi language.
Essay on the Demand for Commodities
Essay Contents:
- माँग का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definitions of Demand)
- वस्तुओं की माँग का कारण (Causes of the Goods Demanded)
- माँग को प्रभावित करने वाले तत्व (Factors Affecting Demand)
- माँग के प्रकार (Types of Demand)
- माँग का नियम (Law of Demand)
- माँग तालिका (Demand Schedule)
- माँग के नियम की व्याख्या (Explanation of Law of Demand)
- माँग के नियम के अपवाद (Exceptions to Law of Demand)
Essay # 1. माँग का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definitions of Demand):
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अर्थ (Meaning):
अर्थशास्त्र के क्षेत्र में ‘माँग’ (Demand) को एक धुरी (Pivot) की संज्ञा दी जा सकती है जिसके चारों ओर सम्पूर्ण आर्थिक क्रियाएँ चक्कर लगाती हैं । किन्तु माँग के नियम को समझाने से पूर्व यह आवश्यक है कि हम इच्छा (Desire), आवश्यकता (Want) एवं माँग (Demand) शब्दों के मौलिक भेद को समझ लें ।
सामान्यतः इन तीनों शब्दों को पर्यायवाची मान लिया जाता है किन्तु अर्थशास्त्र में ये तीनों शब्द अपना अलग-अलग अर्थ रखते हैं । मानवीय इच्छाएँ अनन्त एवं असीमित होती हैं जिनका सम्बन्ध मनुष्य की कल्पनाओं से होता है । मनुष्य की प्रत्येक कल्पना मनुष्य के वास्तविक जीवन में पूरी नहीं होती ।
मानवीय मनोवृत्ति (Human Psychology) सदैव मनुष्य को अच्छे-से-अच्छा उपभोग करने की प्रेरणा देती है किन्तु मनुष्य के पास इन असीमित इच्छाओं की पूर्ति के लिए सीमित साधन (Limited Resources) होते हैं । जिन इच्छाओं की पूर्ति के लिए हम अपने सीमित साधन व्यय करने को तैयार होते हैं वे इच्छाएँ हमारी आवश्यकताएँ (Wants) कहलाती हैं ।
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दूसरे शब्दों में, जब क्रय-शक्ति द्वारा पोषित करके इच्छा पूरी कर ली जाती है तब इच्छा माँग में परिवर्तित हो जाती है । प्रत्येक माँग में एक क्रय-शक्ति का वास्तविक व्यय अर्थात् कीमत (Price) सदैव निहित होती है जिस पर उपभोक्ता उस वस्तु की माँग करता है । इस प्रकार माँग का सम्बन्ध सदैव कीमत से होता है तथा कीमत की अनुपस्थिति में माँग अर्थहीन हो जाती है ।
इच्छा, आवश्यकता एवं माँग को एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है । एक गरीब व्यक्ति की वायुयान से सफर की कल्पना करना इच्छा की श्रेणी में आयेगा ।
एक धनी व्यक्ति जब अपने साधनों से वायुयान की यात्रा का टिकट खरीदने जाता है तो यह आवश्यकता कहलायेगी क्योंकि वह टिकट खरीदने की क्षमता रखता है और वह जब टिकट खरीद लेता है तो आवश्यकता माँग के रूप में परिवर्तित हो जाती है ।
परिभाषाएँ (Definitions):
प्रो. पेन्सन (Penson) के अनुसार, ”माँग एक प्रभावी इच्छा है जिसमें तीन तथ्य सम्मिलित होते हैं:
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(i) वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा,
(ii) वस्तु खरीदने के लिए साधन उपलब्धता तथा
(iii) वस्तु खरीदने के लिए साधनों को व्यय करने की तत्परता” |
प्रो. पेन्सन की परिभाषा मुख्यतः
आवश्यकताओं के सन्दर्भ में ही लागू होती है और इसके द्वारा माँग का मौलिक प्रवृत्तियों का ज्ञान नहीं होता । इसके अतिरिक्त यह परिभाषा आवश्यकता एवं माँग में अन्तर भी स्पष्ट नहीं करती । इन्हीं कमियों के कारण इस परिभाषा को पूर्ण परिभाषा नहीं कहा जा सकता ।
प्रो. जे. एस. मिल (J. S. Mill) के अनुसार, ”माँग शब्द का अभिप्राय माँगी गई उस मात्रा से लगाया जाना चाहिए जो एक निश्चित कीमत पर क्रय की जाती है ।”
प्रो. बेन्हम (Benham) के अनुसार, ”किसी दी गई कीमत पर वस्तु की माँग वह मात्रा है जो उस कीमत पर एक निश्चित समय में खरीदी जाती है ।”
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प्रो. मेयर्स (Mayers) के अनुसार, ”किसी वस्तु की माँग उन मात्राओं की तालिका होती है जिन्हें क्रेता एक समय विशेष पर सभी सम्भव कीमतों पर खरीदने को तैयार रहता है ।”
उपर्युक्त परिभाषाओं का यदि विश्लेषण किया जाये तो माँग में निम्नलिखित पाँच तत्व निहित होना आवश्यक है:
(i) वस्तु की इच्छा (Desire for a Good)
(ii) वस्तु क्रय के लिए पर्याप्त साधन (Sufficient Resources to Buy the Good)
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(iii) साधन व्यय करने की तत्परता (Willingness to Spend)
(iv) एक निश्चित कीमत (Given Price)
(v) निश्चित समयावधि (Given Time Period)
Essay # 2. वस्तुओं की माँग का कारण (Causes of the Goods Demanded):
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वस्तुओं में निहित उनकी उपयोगिता के कारण वस्तुओं की माँग की जाती है । मानवीय आवश्यकताओं को सन्तुष्टि करने की क्षमता उपयोगिता कहलाती है । व्यक्ति किसी वस्तु की माँग इसीलिए करता है क्योंकि उस वस्तु में हमारी आवश्यकता को सन्तुष्टि करने की क्षमता होती है । इस प्रकार वस्तु की माँग उपयोगिता का प्रयोग है ।
माँग फलन (Demand Function):
वस्तु की माँग और इसे प्रभावित करने वाले घटकों के बीच फलनात्मक सम्बन्ध को माँग फलन कहते हैं ।
माँग फलन को निम्नलिखित समीकरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है:
यहाँ:
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Dx = f (Px, Pr, Y, T)
Dx = किसी वस्तु (x) की माँग
Px = x वस्तु की कीमत
Pr = सम्बन्धित वस्तुओं की कीमत
Y = उपभोक्ता की मौद्रिक आय
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T = उपभोक्ता की रुचि
यदि हम वस्तु की कीमत में परिवर्तन का उसकी माँग पर प्रभाव को जानना चाहते हैं तो हमें अन्य कारकों को स्थिर मानना होता है । अन्य बातों के स्थिर रहने पर वस्तु की कीमत और उसकी माँग के बीच के फलनात्मक सम्बन्ध को ही कीमत माँग सम्बन्ध अथवा कीमत माँग कहा जाता है ।
इसे निम्न प्रकार से दर्शाया गया है:
Dx = f(Px)
Essay # 3. माँग को प्रभावित करने वाले तत्व (Factors Affecting Demand):
माँग को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्व हैं:
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(i) वस्तु की उपयोगिता (Utility of the Good):
उपयोगिता का अभिप्राय है, आवश्यकता पूर्ति की समता । एक दी गई समयावधि में वस्तु की माँग का आकार इस बात पर निर्भर करता है कि मनुष्य की आवश्यकता पूर्ति की वस्तु में कितनी क्षमता है । अधिक उपयोगिता वाली वस्तु की माँग अधिक होगी तथा इसके विपरीत कम उपयोगिता वाली वस्तु की माँग कम होगी ।
(ii) आय स्तर (Income Level):
आय स्तर का माँग पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है । उपभोक्ता की आय जितनी अधिक होगी उसकी माँग उतनी ही अधिक हो जायेगी तथा इसके विपरीत आय का कम स्तर माँग को कम कर देगा ।
(iii) धन का वितरण (Distribution of Wealth):
समाज में धन के वितरण का भी माँग पर प्रभाव पड़ता है । समाज में धन और आय का वितरण यदि असमान है तो धनी वर्ग द्वारा विलासिता की वस्तुओं की माँग अधिक होगी । जैसे-जैसे समाज में धन का वितरण समान होता जायेगा वैसे-वैसे समाज में आवश्यक व आरामदायक वस्तुओं की माँग बढ़ती जायेगी ।
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(iv) वस्तु की कीमत (Price of the Good):
वस्तु की कीमत माँग को मुख्य रूप से प्रभावित करती है । कम कीमत पर वस्तु की अधिक माँग तथा अधिक कीमत पर वस्तु की कम माँग होती है ।
(v) सम्बन्धित वस्तुओं की कीमतें (Prices of Related Goods):
सम्बन्धित वस्तुएँ दो प्रकार की होती हैं:
a. स्थानापन्न वस्तुएँ (Substitutes Goods):
ऐसे वस्तुएँ जिनका एक-दूसरे के बदले प्रयोग किया जाता है; जैसे, चीनी-गुड़, चाय-कॉफी आदि ।
b. पूरक वस्तुएँ (Complementary Goods):
ऐसी वस्तुएँ जिनका उपयोग एक साथ किया जाता है; जैसे, कार-पैट्रोल, स्याही-कलम, डबलरोटी-मक्खन आदि ।
स्थानापन्न वस्तुओं में एक वस्तु की कीमत का परिवर्तन दूसरी वस्तु की माँग को विपरीत दिशा में प्रभावित करेगा तथा पूरक वस्तुओं में एक वस्तु के कीमत परिवर्तन के कारण दूसरी वस्तु की माँग समान दिशा में बदलेगी ।
(vi) रुचि, फैशन, आदि (Taste, Fashion, etc.):
वस्तु की माँग पर उपभोक्ता की रुचि, उसकी आदत, प्रचलित फैशन आदि का भी प्रभाव पड़ता है । किसी वस्तु विशेष का समाज में फैशन होने पर निश्चित रूप से उसकी माँग में वृद्धि होगी ।
(vii) भविष्य में कीमत परिवर्तन की आशा (Expected Price Change in Future):
सरकारी नियन्त्रण, दैवीय विपत्ति की आशंका, युद्ध सम्भावना आदि अनेक अप्रत्याशित एवं प्रत्याशित घटकों का भी वस्तु की माँग पर प्रभाव पड़ता है । इसके अतिरिक्त जनसंख्या परिवर्तन, व्यापार दिशा में परिवर्तन, जलवायु, मौसम आदि का भी वस्तु की माँग पर प्रभाव पड़ता है ।
Essay # 4. माँग के प्रकार (Types of Demand):
माँग को मुख्य रूप से तीन रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
(1) कीमत माँग (Price Demand):
कीमत माँग से अभिप्राय वस्तु की उन मात्राओं से है जो एक निश्चित समयावधि में निश्चित कीमतों पर उपभोक्ता द्वारा माँगी जाती है । ‘यदि अन्य बातें समान रहें’ तो वस्तु की कीमत बढ़ जाने से उसकी माँग कम हो जायेगी और वस्तु की कीमत घट जाने से उसकी माँग बढ़ जायेगी ।
यहाँ अन्य बातें समान रहें शब्दों का अभिप्राय यह है कि जिस समय विशेष पर उपभोक्ता किसी वस्तु विशेष की माँग करता है उस समय उपभोक्ता की आय, रुचि, व्यवहार एवं उसके आय स्तर में किसी प्रकार का कोई भी परिवर्तन नहीं होना चाहिए ।
कीमत एवं वस्तु माँग में विपरीत सम्बन्ध होने के कारण कीमत माँग वक्र (Price-Demand Curve) का ढाल ऋणात्मक (Negative) होता है अर्थात् कीमत माँग वक्र बायें से दायें नीचे गिरता हुआ होता है । ऋणात्मक ढाल वाले कीमत-माँग वक्र को चित्र 1 में प्रदर्शित किया गया है ।
DD वक्र बायें से दायें नीचे गिरता हुआ कीमत-माँग वक्र है जो यह बताता है कि वस्तु की कीमत एवं माँग में विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है । OP कीमत पर वस्तु की माँग OQ है । कीमत के OP से घटकर OP1 हो
जाने पर अन्य बातों के समान रहते हुए माँग OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है ।
(2) आय माँग (Income Demand):
सामान्यतः आय माँग का अर्थ वस्तुओं एवं सेवाओं की उन मात्राओं से लगाया जाता है जो अन्य बातों के समान रहने की दशा में उपभोक्ता दी गई समयावधि में अपनी आयु के विभिन्न स्तरों पर खरीदने की क्षमता रखता है । आय माँग वक्र को जर्मनी के अर्थशास्त्री एंजिल (Engel) के नाम पर एंजिल वक्र (Engel’s Curve) भी कहा जाता है ।
आय माँग वस्तु की प्रकृति पर निर्भर होती है ।
वस्तुएँ दो वर्गों में बाँटी जा सकती हैं:
i. श्रेष्ठ वस्तुएँ (Superior Goods),
ii. घटिया वस्तुएँ (Inferior Goods).
i. श्रेष्ठ वस्तुएँ (Superior Goods):
श्रेष्ठ वस्तुओं के सम्बन्ध में आय माँग वक्र धनात्मक ढाल (Positive Slopes) वाला होता है अर्थात् बायें से दायें ऊपर चढ़ता हुआ होता है । श्रेष्ठ वस्तुओं का धनात्मक ढाल वाला आय माँग वक्र यह बतलाता है कि उपभोक्ता की आय में प्रत्येक वृद्धि उसकी माँग में (अन्य बातों के समान रहने पर) भी वृद्धि करती है तथा इसके विपरीत आय की प्रत्येक कमी सामान्य दशाओं में माँग में भी कमी उत्पन्न करती है ।
इस स्थिति की व्याख्या चित्र 2 में की गई है । चित्र में DD आय माँग वक्र (श्रेष्ठ वस्तुओं के लिए) को बताता है । OY आय स्तर पर माँग OQ है । आय स्तर में OY से OY1 तक वृद्धि होने पर अन्य बातों के समान रहने पर माँग भी OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है ।
ii. घटिया वस्तुएँ (Inferior Goods):
घटिया वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती हैं जिन्हें उपभोक्ता हीन दृष्टि से देखता है और आय स्तर के पर्याप्त न होने पर उपभोग करता है; जैसे, मोटा अनाज, वनस्पति घी, मोटा कपड़ा आदि ।
ऐसी दशा में जैसे-जैसे उपभोक्ता की आय में वृद्धि होती है वैसे-वैसे उपभोक्ता इन घटिया वस्तुओं का उपभोग घटाकर श्रेष्ठ वस्तुओं के उपभोग में वृद्धि करने लगता है अर्थात् घटिया वस्तुओं के लिए आय माँग वक्र ऋणात्मक ढाल वाला बायें से दायें नीचे गिरता हुआ होता है जैसा चित्र 3 में प्रदर्शित किया गया है ।
DD वक्र घटिया वस्तुओं के लिए आय माँग वक्र बताता है । आय के OY स्तर पर घटिया वस्तुओं की माँग OQ है । आय स्तर में OY1 तक वृद्धि होने पर उपभोक्ता घटिया वस्तु की माँग OQ से घटाकर OQ1 कर देता है अर्थात् वह श्रेष्ठ वस्तु का उपभोग अधिक आरम्भ कर देता है ।
आय माँग के इस विरोधाभास (Paradox) पर इंग्लैण्ड के अर्थशास्त्री रॉबर्ट गिफिन (Robert Giffin) ने सर्वप्रथम प्रकाश डाला तथा उन्हीं के सम्मानार्थ इसे हम ‘गिफिन का विरोधाभास’ (Figgin’s Paradox) कहते हैं ।
(3) आड़ी अथवा तिरछी माँग (Cross Demand):
अन्य बातें समान रहने पर वस्तु X की कीमत में परिवर्तन होने से उसके सापेक्ष सम्बन्धित वस्तु Y की माँग में जो परिवर्तन होता है उसे आड़ी माँग (Cross Demand) कहते हैं । दूसरे शब्दों में, आड़ी माँग में एक वस्तु की कीमत का उसके सापेक्ष सम्बन्धित दूसरी वस्तु की माँग पर प्रभाव देखा जाता है ।
ये सम्बन्धित व्स्तुएँ दो प्रकार की हो सकती हैं:
i. स्थानापन्न वस्तुएँ (Substitutes Goods):
स्थानापन्न वस्तुएँ वे हैं जो एक-दूसरे के बदले एक ही उद्देश्य के लिए प्रयोग की जाती हैं; जैसे, चाय-कॉफी । ऐसी वस्तुओं में जब एक वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है तब अन्य बातें समान रहने की दशा में (अर्थात् स्थानापन्न वस्तु की कीमत अपरिवर्तित रहने पर) स्थानापन्न वस्तु की माँग में वृद्धि हो जायेगी । उदाहरणार्थ कॉफी की कीमत बढ़ने की दशा में चाय की माँग में वृद्धि होगी ।
इस स्थिति को चित्र 4 में दिखाया गया है । चित्र में DD वक्र स्थानापन्न वस्तु के माँग वक्र को प्रदर्शित करता है । वस्तु Y की कीमत OPy होने पर स्थानापन्न वस्तु की माँग OX1 है । यदि Y वस्तु की कीमत बढ़कर OPy1 हो जाती है तो अनेक उपभोक्ता Y वस्तु का उपभोग त्याग कर स्थानापन्न वस्तु X के उपभोग पर स्थानान्तरित हो जायेंगे जिससे X वस्तु की माँग में वृद्धि हो जायेगी ।
ii. पूरक वस्तुएँ (Complementary Goods):
पूरक वस्तुएँ वे हैं जो किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक साथ प्रयोग की जाती हैं; जैसे, स्कूटर-पैट्रोल । यदि स्कूटर की कीमत में वृद्धि हो जाये तब स्कूटर की पूरक वस्तु पैट्रोल की माँग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जबकि पैट्रोल की कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता ।
इस प्रकार पूरक वस्तुओं की कीमत और खरीदी जाने वाली मात्रा में विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है जिसे चित्र 5 में प्रदर्शित किया गया है । चित्र में DD पूरक वस्तुओं की माँग रेखा है । यदि Y वस्तु की कीमत OP1 से बढ़कर OP2 हो जाती है तो Y वस्तु की पूरक वस्तु X की माँग OX1 से घटकर OX2 रह जाती है ।
माँग के अन्य प्रकार (Few Other Types of Demand):
(i) संयुक्त माँग (Joint Demand):
यह माँग पूरक माँग का ही एक रूप है । जब एक ही उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक ही समय एक से अधिक वस्तुओं की माँग एक साथ की जाती तब ऐसी माँग को संयुक्त माँग कहा जाता है; जैसे, गेंद-बल्ला, जूता-मोजा, स्कूटर-पैट्रोल, आदि । संयुक्त माँग में एक वस्तु का प्रयोग दूसरे के अभाव में नहीं किया जा सकता ।
(ii) व्यूत्पन्न माँग (Derived Demand):
जब एक ही वस्तु की माँग से दूसरी वस्तु की माँग स्वतः उत्पन्न हो जाती है, तो इस प्रकार की माँग को व्यूत्पन्न माँग कहते हैं; जैसे, कपड़े की माँग बढ़ने पर कपड़े के उत्पादन में प्रयोग होने वाले उत्पत्ति के साधनों की माँग में वृद्धि । यही कारण है कि उत्पत्ति के साधनों की माँग होती है क्योंकि इनकी माँग उस वस्तु की माँग पर निर्भर करती है जिसके उत्पादन में ये साधन प्रयोग किये जाते हैं
(iii) सामूहिक माँग (Composite Demand):
जब एक वस्तु दो या दो से अधिक उपयोगों में माँगी जाती है तब ऐसी वस्तु की माँग को सामूहिक माँग कहते हैं; जैसे, कोयला, बिजली, दूध आदि । कोयला अनेक प्रयोगों में प्रयोग किया जाता है, घर में भोजन बनाने हेतु, रेलवे में इंजन शक्ति हेतु, कारखानों में भट्टी का ईंधन आदि ।
Essay # 5. माँग का नियम (Law of Demand):
माँग का नियम वस्तु की कीमत और उस कीमत पर माँगी जाने वाली मात्रा के गुणात्मक (Qualitative) सम्बन्ध को बताता है । उपभोक्ता अपनी मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति के अनुसार अपने व्यवहारिक जीवन में ऊँची कीमत पर वस्तु की कम मात्रा खरीदता है और कम कीमत पर वस्तु की अधिक मात्रा । उपभोक्ता की इसी मनोवैज्ञानिक उपभोग प्रवृत्ति पर माँग का नियम आधारित है ।
माँग का नियम यह बतलाता है कि ‘अन्य बातों के समान रहने पर’ (Other Things Being Equal) वस्तु की कीमत एवं वस्तु की मात्रा में विपरीत सम्बन्ध (Inverse Relationship) पाया जाता है । दूसरे शब्दों में, अन्य बातों के समान रहने की दशा में किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर उसकी माँग में कमी हो जाती है तथा इसके विपरीत कीमत में कमी होने पर वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है ।
मार्शल के अनुसार, ”कीमत में कमी के फलस्वरूप वस्तु की माँगी जाने वाली मात्रा में वृद्धि होती है तथा कीमत में वृद्धि होने से माँग घटती है ।”
सैम्युलसन के शब्दों में, ”दिये गये समय में अन्य बातों के समान रहने की दशा में जब वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है तब उसकी कम मात्रा की माँग की जाती है…….व्यक्ति कम कीमत पर अधिक वस्तुएँ खरीदते हैं और अधिक कीमत पर कम वस्तुएँ खरीदते हैं ।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि दी गई स्थिर दशाओं के अन्तर्गत वस्तु की कीमत और वस्तु की माँग में एक विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है ।
अर्थात्, जहाँ:
P = वस्तु की कीमत
Q = वस्तु की माँग
समीकरण (1) बताता है कि कीमत बढ़ने पर माँग घटेगी तथा कीमत घटने पर माँग बढ़ेगी ।
संक्षेप में, माँग का नियम एक गुणात्मक कथन (Qualitative Statement) है, मात्रात्मक कथन (Quantitative Statement) नहीं । यह नियम केवल कीमत और माँग के परिवर्तन की दिशा बतलाता है, परिवर्तन की मात्रा को नहीं ।
‘अन्य बातें समान रहें’ वाक्यांश का अर्थ (Meaning of ‘Other Things Being Equal’):
माँग के नियम की क्रियाशीलता कुछ मान्यताओं पर आधारित है ।
दूसरे शब्दों में, निम्नलिखित मान्यताओं के अन्तर्गत माँग का नियम क्रियाशील होता है:
1. उपभोक्ता की आय में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए (Consumer’s Income Should Remain Constant) ।
2. उपभोक्ता की रुचि, स्वभाव, पसन्द, आदि में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए (Consumer’s Taste, Nature, like etc. Should Remain Constant) ।
3. सम्बन्धित वस्तुओं की कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए (Prices of Related Goods Should Remain Constant) ।
4. किसी नवीन स्थानापन्न वस्तु का उपभोक्ता को ज्ञान नहीं होना चाहिए (Consumer Remains Unknown with a New Substitute) ।
5. भविष्य में वस्तु की कीमत में परिवर्तन की सम्भावना नहीं होनी चाहिए (No Possibility of Price Change in Future) ।
Essay # 6. माँग तालिका (Demand Schedule):
किसी दिये समय पर वस्तु की विभिन्न कीमतों एवं उन कीमतों पर माँगी जाने वाली वस्तु की मात्राओं के पारस्परिक सम्बन्धों को बताने वाली तालिका माँग तालिका कहलाती है ।
दूसरे शब्दों में, एक निश्चित समय पर बाजार में दी गई विभिन्न कीमतों पर वस्तु की जितनी मात्राएँ बेची जाती हैं यदि इस सम्बन्ध को (अर्थात् कीमत व माँग के सम्बन्ध को) एक तालिका के रूप में व्यक्त किया जाये तो यह माँग तालिका कहलाती है ।
उदाहरण – माँग तालिका के विचार को एक काल्पनिक उदाहरण से समझा जा सकता है:
उपर्युक्त तालिका को यदि ग्राफ पेपर पर खींचा जाय तो चित्र 6 की भाँति हमें DD वक्र प्राप्त होता है । यही माँग वक्र है ।
Essay # 7. माँग के नियम की व्याख्या (Explanation of Law of Demand):
अब प्रश्न उठता है कि माँग वक्र बायें से दायें गिरता हुआ क्यों होता है ? दूसरे शब्दों में, माँग का नियम क्यों लागू होता है ?
कीमत में वृद्धि होने पर माँग में कमी करने और कीमत में कमी होने पर माँग में वृद्धि करने वाले उपभोक्ता के व्यवहार के निन्नलिखित कारण हैं:
(i) घटती सीमान्त उपयोगिता नियम (Law of Diminishing Marginal Utility):
माँग का नियम घटती सीमान्त उपयोगिता नियम पर आधारित है । इस नियम के अनुसार उपभोक्ता द्वारा वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों का उपभोग करने पर वस्तु की सीमान्त इकाइयों की उपयोगिता क्रमशः घटती जाती है । सीमान्त इकाइयों की घटती उपयोगिता के कारण उपभोक्ता वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों की कम कीमत देना चाहता है ।
दूसरे शब्दों में, जैसे-जैसे उपभोक्ता वस्तु की अधिक इकाइयों का क्रय करेगा वैसे-वैसे वह वस्तु की कम कीमत देगा अर्थात् कम कीमत पर वस्तु की अधिक मात्रा खरीदी जायेगी ।
इसी प्रकार जब उपभोक्ता वस्तु की कम इकाइयों का उपभोग करता है तब कम वस्तु के कारण उसे ऊँची सीमान्त उपयोगिता मिलती है जिसके कारण उपभोक्ता ऊँची कीमत देने को तैयार रहता है । दूसरे शब्दों में, कम उपभोग के कारण ऊँची उपयोगिता उपभोक्ता को वस्तु की ऊँची कीमत देने को प्राप्त करती है अर्थात् ऊँची कीमत पर कम मात्रा क्रय की जाती है । यही माँग का नियम है ।
संक्षेप में,
इसी प्रकार,
(ii) क्रय-शक्ति में वृद्धि अर्थात् आय प्रभाव (Increase in Purchasing Power or Income Effect):
वस्तु की कीमत में कमी होने पर उपभोक्ता की वास्तविक आय (अथवा क्रय-शक्ति) में वृद्धि होती है जिसके कारण उपभोक्ता को अपना पूर्व उपभोग स्तर बनाये रखने के लिए पहले की तुलना में कम व्यय करना पड़ता है । दूसरे शब्दों में, वस्तु की कीमत में कमी होने के कारण उपभोक्ता पहले किये जाने वाले कुल व्यय में ही अब वस्तु की अधिक मात्रा खरीद सकता है ।
इस प्रकार वस्तु की कीमत में कमी होने पर वस्तु का अधिक क्रय सम्भव हो पाता है । यही माँग का नियम है । इसके विपरीत वस्तु की कीमत में वृद्धि के कारण उपभोक्ता की वास्तविक आय (अथवा क्रय-शक्ति) में कमी होती है जिसके कारण वस्तु का उपभोग घट जाता है । यही माँग का नियम है ।
इसी प्रकार,
(iii) प्रतिस्थापन प्रभाव (Substitution Effects):
वस्तु की कीमत एवं माँग के विपरीत सम्बन्ध (अथवा ऋणात्मक सम्बन्ध) का कारण प्रतिस्थापन प्रभाव है । जब एक ही आवश्यकता की पूर्ति दो या अधिक वस्तुओं से सम्भव होती है तब अन्य वस्तुओं की कीमतें स्थिर रहने की दशा में एक वस्तु की कीमत का परिवर्तन मूल वस्तु के उपभोग में इसलिए परिवर्तन कर देता है क्योंकि उपभोक्ता मूल वस्तु एवं स्थानापन्न वस्तु के प्रयोग अनुपात में परिवर्तन कर देता है । यही प्रतिस्थापन प्रभाव (Substitution Effect) है ।
उदाहरणार्थ, चीनी और गुड़ एक ही उद्देश्य की पूर्ति करते हैं । चीनी और गुड़ में यदि चीनी की कीमत में कमी हो जाती है तब अनेक उपभोक्ता गुड़ का उपभोग छोड़कर चीनी के उपभोग पर प्रतिस्थापित हो जायेंगे जिसके कारण चीनी की माँग में वृद्धि हो जायेगी ।
इसके विपरीत यदि चीनी की कीमत में वृद्धि होती है तब अनेक उपभोक्ता चीनी का उपभोग न कर पाने के कारण गुड़ के उपभोग पर प्रतिस्थापित हो जायेंगे जिसके फलस्वरूप चीनी की माँग में कमी हो जायेगी । इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रतिस्थापन प्रभाव के कारण वस्तु की कीमत कम होने पर उसकी माँग बढ़ती है और कीमत के बढ़ने पर माँग घटती है ।
(iv) क्रेताओं की संख्या में परिवर्तन (Change in Consumer‘s Number):
वस्तु की कीमत पर परिवर्तन उपभोक्ता की संख्या को भी प्रभावित करता है । जब किसी वस्तु की कीमत में कमी होती है, तो कुछ ऐसे उपभोक्ता भी उस वस्तु का उपभोग करने लगते हैं जो आरम्भ में ऊँची कीमत के कारण उपभोग करने में असमर्थ थे । ऐसी दशा में वस्तु की माँग बढ़ जाती है ।
इसके विपरीत जब किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है तो अनेक उपभोक्ता अपनी सीमित आय के कारण उस वस्तु का उपभोग बन्द कर देते हैं जिसके कारण वस्तु की माँग घट जाती है । यही माँग का नियम है ।
Essay # 8. माँग के नियम के अपवाद (Exceptions to Law of Demand):
कुछ दशाओं में कीमत और माँग का प्रतिलोम सम्बन्ध क्रियाशील नहीं होता । ऐसी दशाओं को नियम का अपवाद कहा जाता है ।
जो निम्नलिखित हैं:
(i) भविष्य में कीमत वृद्धि की सम्भावना (Expected Rise in Future Price):
कुछ भावी प्रत्याशित परिस्थितियों के कारण जैसे युद्ध, अकाल, क्रान्ति, सरकारी नीति, सीमित पूर्ति जैसी सम्भावनाओं में कीमत वृद्धि के बावजूद माँग में उत्तरोत्तर वृद्धि होती चली जायेगी क्योंकि उपभोक्ता भविष्य में और कीमत वृद्धि की आशंका से वर्तमान में माँग को बढ़ा देगा ।
ऐसी दशा में कीमत और माँग में प्रतिलोम सम्बन्ध न होकर सीधा सम्बन्ध (Direct Relationship) होता है और माँग वक्र बायें से दायें ऊपर की ओर चढ़ता हुआ बन जाता है ।
(ii) प्रतिष्ठासूचक वस्तुएँ (Prestigious Goods):
प्रतिष्ठासूचक वस्तुओं में मिथ्या आकर्षण (False Show) के कारण माँग का नियम क्रियाशील नहीं होता । समाज का धनी वर्ग अपनी श्रेष्ठता प्रदर्शित करने के लिए ऊँची कीमत वाली वस्तुओं का अधिक क्रय करता है । हीरे-जवाहरात, बहुमूल्य आभूषण, कीमती कलाकृतियाँ आदि वस्तुओं की माँग पर कीमत परिवर्तन का प्रभाव नहीं पड़ता ।
वास्तविकता तो यह है कि इन वस्तुओं की कीमतों में जैसे-जैसे वृद्धि होती जाती है धनी वर्ग मिथ्या आकर्षण के वशीभूत होकर इन वस्तुओं की माँग भी बढ़ाता जाता है ।
(iii) उपभोक्ता की अज्ञानता (Ignorance of Consumer):
जब उपभोक्ता अपनी अज्ञानता के कारण ऊँची कीमत देकर यह अनुभव करता है कि उसने अधिक टिकाऊ एवं श्रेष्ठ वस्तु खरीदी है तब ऊँची कीमत माँग को प्रभावित नहीं करती ।
उसके अतिरिक्त जब किसी वस्तु की कीमत घटाई जाती है तब उपभोक्ता अपनी अज्ञानता के कारण कम कीमत वाली वस्तु को घटिया समझकर उपभोग नहीं करता । ऐसी दशा में कीमत घटने पर उपभोग अधिक होने के स्थान पर कम हो जाता है और माँग का नियम क्रियाशील नहीं होता ।
(iv) गिफिन का विरोधाभास (Giffin‘s Paradox):
जब उपभोग की दो वस्तुओं में एक घटिया वस्तु (Inferior Good) हो तथा दूसरी श्रेष्ठ वस्तु (Superior Good) हो तब गिफिन का विरोधाभास उत्पन्न होता है । घटिया वस्तुएँ वे होती हैं जिनका उपभोग उपभोक्ता द्वारा इसलिए किया जाता है क्योंकि उपभोक्ता अपनी सीमित आय और श्रेष्ठ वस्तु की ऊँची कीमत के कारण कम कीमत वाली वस्तु अर्थात् घटिया वस्तु का उपभोग करता है ।
ऐसी दशा में घटिया वस्तु की कीमत में जब कमी होती है तब उपभोक्ता कीमत के घटने के कारण सृजित अतिरिक्त क्रय-शक्ति से अच्छी वस्तु का उपभोग बढ़ा देता है तथा घटिया वस्तु का उपभोग घटा देता है । इस प्रकार घटिया वस्तु की कीमत में कमी होने पर उसकी माँग में कमी होती है ।
माँग के इस विरोधाभास की ओर सर्वप्रथम इंग्लैण्ड के अर्थशास्त्री रॉबर्ट गिफिन (Robert Giffin) ने ध्यान आकृष्ट किया था । सम्मानार्थ उन्हीं के नाम पर इसे ‘गिफिन का विरोधाभास’ (Giffin’s Paradox) के नाम से जाना जाता है ।
गिफिन विरोधाभास वाली घटिया वस्तु के माँग वक्र को चित्र 7 में दिखाया गया है । चित्र में DD घटिया वस्तु का माँग वक्र है जो बायें से दायें ऊपर की ओर बढ़ता हुआ है । OP कीमत पर उपभोक्ता घटिया वस्तु की OQ मात्रा क्रय करता है ।
जब उपभोक्ता की क्रय-शक्ति में, घटिया वस्तु की कीमत घटने (चित्र में OP से OP1) से वृद्धि होती है तब उपभोक्ता घटिया वस्तु का उपभोग OQ से OQ1 तक घटाकर श्रेष्ठ वस्तु की ओर उपभोग बढ़ा देता है । दूसरे शब्दों में, घटिया वस्तु की कीमत घटने पर उसकी माँग में कमी होती है । यही माँग के नियम का अपवाद है ।