Read this article in Hindi to learn about conditions of price discrimination in monopoly markets.
कीमत विभेद (Price Discrimination):
कुछ विशेष परिस्थितियों में एकाधिकारी अपने कुल लाभ में वृद्धि के उद्देश्य से एकसमान वस्तुओं को विभिन्न बाजारों में विभिन्न कीमतों पर बेचता है । इस प्रकार एकाधिकारी कीमत विभेद करके लाभ कमाता है । कीमत विभेद तभी सम्भव है जब उत्पादक के पास एकाधिकारी शक्ति हो ।
पूर्ण प्रतियोगिता में कोई फर्म कीमत विभेद नहीं कर सकती क्योंकि पूर्ण प्रतियोगिता में अनेक फर्में उद्योग से कीमत प्राप्त करके एकसमान वस्तुओं को निर्धारित कीमत पर बेचती हैं ।
परस्पर स्पर्द्धा होने के कारण पूर्ण प्रतियोगी फर्में कीमत विभेद की नीति नहीं अपना सकतीं । एकाधिकारी अपने उत्पादन की कीमत स्वयं निर्धारित करता है तथा वस्तु का स्थानापन्न उपलब्ध न होने के कारण एकाधिकारी कीमत विभेद नीति अपनाने में सफल हो जाता है ।
ADVERTISEMENTS:
श्रीमती जॉन रॉबिन्सन (Mrs. Joan Robinson) के शब्दों में, ”एक ही नियन्त्रण के अन्तर्गत उत्पादित एकसमान वस्तुओं को विभिन्न क्रेताओं को विभिन्न कीमतों पर बेचने की क्रिया कीमत विभेद कही जाती है ।”
प्रो. स्टिगलर (Stigler) के शब्दों में, ”एक ही वस्तु को दो या दो से अधिक कीमतों पर बेचे जाने की क्रिया को कीमत विभेद कहा जाता है ।”
कीमत विभेद की शर्तें (Conditions of Price Discrimination):
कुछ परिस्थितियों में एकाधिकारी के लिए यह लाभप्रद होता है कि वह अपनी वस्तु के विक्रय के लिए बाजारों को विभक्त करता है और विभिन्न बाजारों में विभिन्न क्रेताओं से विभिन्न मूल्य प्राप्त करने में सफल हो जाता है ।
कीमत विभेद की सफलता की दो शर्तें मुख्य हैं:
ADVERTISEMENTS:
(i) बाजारों को पृथक् रखा जाये । अन्यथा क्रेता एक बाजार में कम कीमत पर वस्तु खरीद कर महँगे बाजार में वस्तु को बेचने लगेगा जिसके फलस्वरूप कीमत विभेद समाप्त हो जायेगा ।
(ii) बाजारों में माँग की लोच एकसमान नहीं होनी चाहिए । दूसरे शब्दों में, माँग की कीमत लोच (Price Elasticity of Demand) विभिन्न बाजारों में भिन्न-भिन्न होनी चाहिए ।
श्रीमती जॉन रॉबिन्सन के शब्दों में, ”यदि एक एकाधिकारी के लिए एक ही वस्तु को दो पृथक् बाजारों में बेचना सम्भव हो, यह उसके लिए लाभप्रद होगा कि वह उनसे अलग-अलग कीमत ले बशर्ते कि इन पृथक् बाजारों में माँग की लोच एकसमान न हो ।”
उपर्युक्त दोनों शर्तें कीमत विभेद को सम्भव एवं लाभप्रद बनाती हैं ।
ADVERTISEMENTS:
निम्नलिखित बिन्दु भी कीमत विभेद को लाभप्रद बनाते हैं:
(1) कीमत विभेद उपभोक्ता के विशेष व्यवहार (Peculiar Behaviour) के कारण भी सम्भव होता है । उपभोक्ता सामान्यतः कीमत अन्तरों (Price Differences) से अनभिज्ञ होता है अथवा वह यह सोच सकता है ऊइ यदि वह कुछ ऊँची कीमत दे रहा है तो उसके बदले में वह अपेक्षाकृत श्रेष्ठ वस्तु सेवा प्राप्त कर रहा है । इस विचार के कारण वह ऊँची कीमत देने को सहज ही तैयार हो जाता है ।
(2) कीमत विभेद तब सम्भव है जब वस्तु तथा सेवा का हस्तान्तरण नहीं होता; जैसे – डॉक्टर एवं वकील की सेवाएँ ।
(3) कभी-कभी कीमत विभेद कानूनी स्वीकृति (Legal Recognition) के कारण भी सम्भव हो पाता है । जैसे – बिजली दर घरेलू तथा औद्योगिक प्रयोगों के लिए भिन्न-भिन्न होती है । घरेलू क्षेत्र में ऊँची कीमत तथा औद्योगिक क्षेत्र में कम कीमत पर विद्युत् पूर्ति करता है ।
(4) वस्तु विभेद (Product Differentiation) भी कीमत विभेद को सम्भव बनाता है । एक ही वस्तु पदार्थ को विभिन्न प्रकार की पैकिंग में प्रस्तुत करके एकाधिकारी विभिन्न वर्गों के उपभोक्ताओं से विभिन्न कीमतें वसूल करता है ।
कीमत विभेद के लाभप्रद होने की दशाएँ (Conditions of Profitable Price Discrimination):
1. प्रो. फर्गुसन (Ferguson) के शब्दों में, ”एक वस्तु की दी गयी मात्रा की बिक्री से प्राप्त कुल आगम को अधिकतम करने के लिए कीमत विभेदी एकाधिकारी विभिन्न बाजारों में विक्रय की जाने वाली मात्रा को इस प्रकार बाँटेगा कि प्रत्येक बाजार में सीमान्त आगम बराबर हो जाये ।”
अर्थात् MRA = MRB
जहाँ MRA तथा MRB क्रमशः बाजार A तथा बाजार B की सीमान्त आगम हैं ।
2. कीमत विभेद में एकाधिकारी के अधिकतम लाभ की दशा में,
ADVERTISEMENTS:
MR = MC
अर्थात् कुल उत्पादन का सीमान्त आगम तथा कुल उत्पादन की सीमान्त लागत आपस में बराबर होती हैं ।
इस प्रकार, सन्तुलन की शर्त के अनुसार
MRA = MRB = TMC
ADVERTISEMENTS:
एकाधिकारी प्रत्येक बाजार में वस्तु की उतनी मात्रा बेचेगा जिससे प्रत्येक बाजार में सीमान्त आगम कुल उत्पादन की सीमान्त लागत (TMC) के बराबर हो जाये ।
यदि एक बाजार में सीमान्त आगम कुल सीमान्त लागत से कम है (MRA < TMC) तथा दूसरे बाजार में सीमान्त आगम कुल सीमान्त लागत से अधिक है (MRB > TMC) तो ऐसीदशा में कीमत विभेद की नीति अपनाने वाले एकाधिकारी के लिए यह लाभप्रद होगा कि वस्तु की कुछ इकाइयाँ पहले बाजार से हटाकर दूसरे बाजार में स्थानान्तरित कर दे ।
यह स्थानान्तरण तब तक चलता रहेगा जब तक सन्तुलन की दशा प्राप्त नहीं हो जाती ।
अर्थात् MRA = MRB = TMC
ADVERTISEMENTS:
कीमत विभेद नीति अपनाने वाला एकाधिकारी विभिन्न बाजारों में कीमत तय करते समय बाजार की माँग की लोच को ध्यान में रखता है । जिस बाजार में माँग की लोच जितनी कम होगी उस बाजार में उतनी ही अधिक कीमत वसूल करेगा । इसके विपरीत, बाजार में माँग की लोच जितनी अधिक होगी उस बाजार में एकाधिकारी उतनी ही कम कीमत वसूल करेगा ।
उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण:
हम जानते हैं कि एकाधिकार में,
बाजार A में कम लोच के कारण कीमत अधिक है । इस प्रकार बाजार में माँग की लोच जितनी अधिक बेलोच (Inelastic) होगी उस बाजार में एकाधिकारी उतनी ही अधिक कीमत रखकर अधिक लाभ कमा सकता है और इसके विपरीत बाजार में माँग की लोच जितनी अधिक होगी, एकाधिकारी उस बाजार में उतनी ही कम कीमत निर्धारित करेगा ।
ADVERTISEMENTS:
चित्र द्वारा निरूपण (Diagrammatical Representation):
चित्र 10 में कीमत विभेद की दशा को प्रदर्शित किया गया है जहाँ बाजार A का माँग वक्र ARA बाजार B के माँग वक्र ARB की तुलना में कम लोचदार है । दोनों बाजारों के सीमान्त आगम वक्र क्रमशः MRA तथा MRB हैं । दोनों बाजारों का संयुक्त सीमान्त आगम वक्र DKE द्वारा दिखाया गया है (चित्र में देखें MR = MRA + MRB ) |
चित्र में कुल सीमान्त लागत वक्र TMC सीमान्त आगम वक्र MR को बिन्दु E पर काटता है जहाँ एकाधिकारी का कुल उत्पादन OQ है । कीमत विभेद की शर्त के अनुसार एकाधिकारी अपने उत्पादन को दोनों बाजारों में इस प्रकार बाँटता है कि दोनों बाजारों का सीमान्त आगम एकाधिकारी फर्म के सीमान्त आगम के बराबर हो जाये ।
अर्थात्,
MRA = MRB = MR = TMC
चित्रानुसार,
ADVERTISEMENTS:
EAQA = EBQB = EQ
इस प्रकार एकाधिकारी अपने कुल उत्पादन OQ को दो भागों में बाँटकर वस्तु की OQA मात्रा को A बाजार में तथा OQB मात्रा को B बाजार में बेचता है ।
अर्थात्,
OQ = OQA + OQB
चित्र से स्पष्ट है कि:
ADVERTISEMENTS:
(i) OQB > OQA
अर्थात् कम लोचदार माँग वाले बाजार A की तुलना में अधिक लोचदार माँग वाले बाजार B में विक्रय मात्रा अधिक है ।
(ii) OPA > OPB
अर्थात् कम लोचदार माँग वाले बाजार A की तुलना में अधिक लोचदार माँग वाले बाजार B में कीमत कम है ।
इस प्रकार एकाधिकारी कीमत विभेद प्रक्रिया में बेलोच माँग वाले बाजार में ऊँची कीमत पर कम मात्रा तथा अपेक्षाकृत अधिक लोचदार माँग वाले बाजार में कम कीमत पर वस्तु की अधिक मात्रा का विक्रय करेगा ।
श्रीमती जॉन रॉबिन्सन के शब्दों में, ”बाजार में वस्तु की माँग लोच जितनी अधिक होगी, उत्पादन का बड़ा भाग उसमें बेचा जायेगा । माँग की अधिक बेलोचता होने पर उत्पादन का कम भाग बेचा जायेगा ।”
राशिपातन Dumping (कीमत विभेद की एक विशेष दशा) (Special Case of Price Discrimination):
ADVERTISEMENTS:
कीमत विभेद की एक विशेष दशा राशिपातन कहलाती है जिसमें उत्पादक घरेलू बाजार में एकाधिकारी होने के कारण वस्तु की ऊँची कीमत प्राप्त करता है किन्तु विदेशी बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता का सामना करते हुए एकाधिकारी उसी वस्तु को कम कीमत पर बेचता-है ।
कभी-कभी एकाधिकारी विदेशी बाजार पर अधिकार करने के उद्देश्य से वस्तु को विदेशी बाजार में हानि पर भी बेचता है तथा विदेशी व्यापार का यह घाटा एकाधिकारी सुरक्षित एवं बेलोचदार माँग वाले घरेलू बाजार में ऊँची कीमत वसूल करके पूरा करता है ।
इस प्रकार राशिपातन में एकाधिकारी कम कीमत पर वस्तु को विदेशी बाजार में भर (Dump) देता है । दूसरे शब्दों में, राशिपातन का उद्देश्य यह है कि उत्पादक विदेशी बाजार प्रतियोगिता का सामना कर सके और विदेशों में कम कीमत पर वस्तु बेचकर विदेशी बाजार पर अधिकार कर सके ।
संक्षेप में, राशिपातन की शर्तों को निम्नलिखित रूप से व्यक्त किया जा सकता है:
1. उत्पादक घरेलू बाजार में एकाधिकारी हो ।
2. बाजारों का पृथक्करण घरेलू एवं विदेशी बाजार के रूप में किया जाना चाहिए ।
3. कीमत विभेद की सामान्य शर्त की भाँति राशिपातन में भी दोनों बाजारों में माँग की लोच भिन्न-भिन्न होनी चाहिए । घरेलू बाजार (सुरक्षित बाजार) में माँग की लोच विदेशी बाजार (अपेक्षाकृत कम सुरक्षित बाजार) की तुलना में कम होनी चाहिए ताकि कीमत विभेद की नीति अपनाने वाला एकाधिकारी घरेलू बाजार में सुरक्षित होने के कारण अपनी वस्तु को ऊँची कीमत पर बेच सके ।
राशिपातन: चित्र द्वारा निरूपण (Dumping: Diagrammatical Representation):
राशिपातन के अन्तर्गत अपनाए जाने वाले कीमत विभेद को चित्र 11 में दिखाया गया है । एकाधिकारी के घरेलू बाजार (अर्थात् सुरक्षित एवं बेलोच माँग वाले बाजार) के माँग वक्र को ARH द्वारा तथा विदेशी बाजार (अर्थात् पूर्ण प्रतियोगी बाजार) के माँग वक्र ARW से दिखाया गया है ।
घरेलू तथा विदेशी बाजारों के सीमान्त आगम वक्र क्रमशः MRH तथा MRW हैं । विदेशी बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता के कारण ARW = MRW है । दोनों बाजारों का संयुक्त सीमान्त आगम वक्र ABC द्वारा दिखाया गया है (चित्र में देखें MR = MRH + MRW) |
चित्र में कुल सीमान्त लागत वक्र TMC सीमान्त आगम वक्र MR को बिन्दु E पर काटता है जहाँ एकाधिकारी का कुल उत्पादन OQX है । विभेदपूर्ण एकाधिकारी अपने कुल उत्पादन OQX को घरेलू एवं विदेशी बाजार में इस प्रकार बाँटेगा कि दोनों बाजारों का सीमान्त आगम एकाधिकारी के सीमान्त आगम के बराबर हो जाये ।
अर्थात्, MRH = MRW = MR = TMC
चित्र में,
EHQH = EWQW = EQX
चित्र से स्पष्ट है:
(i) OQW > OQH
अर्थात् राशिपातन में घरेलू बाजार की तुलना में एकाधिकारी विदेशी बाजार में अधिक मात्रा का विक्रय करता है ।
(ii) OPH > OPW
अर्थात् राशिपातन में एकाधिकारी घरेलू बाजार में अधिक कीमत तथा विदेशी बाजार में कम कीमत वसूल करता है ।
दूसरे शब्दों में, एकाधिकारी कम लोचदार माँग वाले घरेलू बाजार में ऊँची कीमत पर कम मात्रा तथा अधिक लोचदार (अथवा पूर्ण लोचदार) माँग वाले विदेशी बाजार में कम कीमत पर वस्तु की अधिक मात्रा बेचता है ।