Read this article in Hindi to learn about the various characteristics of Iso-Product curves.

1. समोत्पाद वक्र बायें से दायें नीचे गिरता है (Iso-Product Curve Slopes Downward Left to Right):

समोत्पाद वक्र की परिभाषा के अनुसार इस वक्र का प्रत्येक बिन्दु फर्म के एक समान उत्पादन स्तर को बताता है । यदि एक उत्पत्ति के साधन की मात्रा में वृद्धि की जाती है तो निश्चित रूप से उत्पादन स्तर को स्थिर बनाये रखने के लिए दूसरे उत्पत्ति के साधन की मात्रा में कमी करनी पड़ेगी ।

यही कारण है कि समोत्पाद वक्र बायें से दायें नीचे गिरता है और ऋणात्मक ढाल (Negative Slope) वाला होता है ।

ADVERTISEMENTS:

चित्र 3 में समोत्पाद वक्र दिखाया गया है । समोत्पाद वक्र की अवधारणा के अनुसार बिन्दु A (OX1 + OY1) पर तथा बिन्दु B (OX2 + OY2) पर एक समान उत्पादन मिलेगा ।

A और B बिन्दुओं पर एक समान उत्पादन प्राप्त करने के लिए जब साधन X की मात्रा में OX1 से OX2 तक वृद्धि की जाती है तब निश्चित रूप से Y साधन की मात्रा में OY1 से OY2 तक कमी करनी पड़ेगी । एक साधन की मात्रा की वृद्धि तथा दूसरे साधन की मात्रा की कमी के कारण समोत्पाद वक्र ऋणात्मक ढाल वाला वक्र बनकर बायें से दायें नीचे की ओर गिरता है ।

2. ऊँचा समोत्पाद वक्र ऊँचे उत्पादन स्तर को बताता है तथा समोत्पाद पर निचले उत्पादन स्तर को बताता है (Higher Iso-Product Curve Tells Higher Production Level and Vice Versa):

ADVERTISEMENTS:

इस विशेषता को चित्र 4 द्वारा स्पष्ट किया गया है । बिन्दु A समोत्पाद वक्र IP1 पर है जिसका उत्पादन साधन X की OX1 मात्रा तथा साधन Y की OY1 मात्रा से किया जा रहा है । बिन्दु B, जो ऊँचे समोत्पाद वक्र पर है, का उत्पादन साधन X की OX2 मात्रा तथा साधन Y की OY1 मात्रा से किया जा रहा है ।

स्पष्ट है कि दोनों बिन्दुओं की प्राप्ति में साधन Y की मात्रा OY1 स्थिर है जबकि बिन्दु B के संयोग में साधन X की मात्रा X1X2 अधिक है । ऐसी दशा में बिन्दु B पर X साधन का अधिक प्रयोग होने के कारण बिन्दु A की तुलना में उत्पादन अधिक होगा । बिन्दु B ऊँचे समोत्पाद वक्र पर है जिससे स्पष्ट होता है ऊँचा समोत्पाद वक्र ऊँचे उत्पादन स्तर को बताता है ।

3. दो समोत्पाद वक्र एक-दूसरे को नहीं काटते (Two Iso-Product Curves do not Cut Each Other):

एक समोत्पाद वक्र उत्पादन के निश्चित स्तर को बतलाता है । यदि दो समोत्पाद वक्र के काटने की अवधारणा को स्वीकार कर लिया जाये तब इसका अर्थ है कि कटान का बिन्दु दोनों समोत्पाद वक्रों में उभयनिष्ठ है ।

ADVERTISEMENTS:

यह उभयनिष्ठ बिन्दु उत्पादन के एक और केवल एक स्तर को प्रदर्शित करना चाहिए किन्तु यह उभयनिष्ठ बिन्दु को समोत्पाद वक्रों का बिन्दु होने के कारण केवल एक उत्पादन स्तर को सूचित नहीं कर सकता । अतः स्पष्ट है कि दो समोत्पाद वक्र आपस में एक-दूसरे को नहीं काट सकते ।

4. समोत्पाद वक्र मूलबिन्दु की ओर उन्नतोदर होता है (Iso-Product Curve is Convex to the Origin):

समोत्पाद वक्र के इस गुण को नीचे दिये चित्र 5 की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है ।

स्थिति I में समोत्पाद वक्र मूलबिन्दु की ओर अवनतोदर (Concave) है जो बढ़ती हुई सीमान्त तकनीकी प्रतिस्थापन दर (Increasing MRTS) को प्रदर्शित करता है ।

अर्थात्, af < bg < ch < di

स्थिति II में समोत्पाद वक्र मूलबिन्दु की ओर उन्नतोदर (Convex) है जो घटती सीमान्त तकनीकी प्रतिस्थापन दर (Decreasing MRTS) को प्रदर्शित करता है ।

अर्थात्, af > bg > ch > di

स्थिति III में समोत्पाद वक्र एक सीधी रेखा है जो X-अक्ष के साथ 45 का कोण बनाती है । इस दशा में सीमान्त तकनीकी प्रतिस्थापन दर स्थिर है ।

अर्थात्, af = bg = ch = di

ADVERTISEMENTS:

हमें ज्ञात है कि समोत्पाद वक्र की अवधारणा घटती सीमान्त तकनीकी प्रतिस्थापन दर पर आधारित है । अतः समोत्पाद वक्र सदैव मूलबिन्दु की ओर उन्नतोदर (Convex) होगा ।

5. समोत्पाद वक्र कभी अक्षों को स्पर्श नहीं करता (Iso-Product Curve Never Touches Axes):

समोत्पाद वक्र उत्पत्ति के दो साधनों के विभिन्न संयोगों से उत्पादित स्थिर उत्पादन मात्रा को सूचित करता है । यदि समोत्पाद वक्र को अक्षों को स्पर्श करता हुआ मान लिया जाये तब इसका अभिप्राय है कि बिन्दु A तथा B पर केवल एक उत्पत्ति का साधन प्रयोग किया जा रहा है । (देखें चित्र 6) किन्तु समोत्पाद वक्र की अवधारणा में दो उत्पत्ति के साधनों का प्रयोग आवश्यक है । अतः स्पष्ट कि समोत्पाद वक्र कभी अक्षों को स्पर्श नहीं करते ।